कदम कदम बढ़ाये जा - Anthem of नेताजी की आज़ाद हिन्द फ़ौज
- कैप्टन राम सिंह (Captain Ram Singh)
(Remembering NetaJi on his birthday - January 23)
कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
विजयी के सदृश जियो रे
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो
चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे
सूरज को नही डूबने दूंगा
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एडियाँ जमाकर
खडा होना मैने सीख लिया है
घबराओ मत
मै क्षितिज पर जा रहा हूँ
सूरज ठीक जब पहाडी से लुढकने लगेगा
मै कंधे अडा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
Ganesh Shankar Vidyarthi is a great revolutionary and journalist of India from pre-independence time. He was born in 1890 and died in 1931...
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
- जयशंकर प्रसाद (JaiShankar Prasad)
- video from 'Chanakya' serial directed by Chandra Prakash Dwivedi
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो
Anna Hazare ji gave a wonderful talk in Gayatri Parivar Youth Camp at
Ralegan Siddhi on Jun 9, 2007. A must watch.
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मोको कहां ढूढे रे बन्दे
- कबीर (Kabir)
- English translation by Rabindranath Tagore
मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
बढ़े चलो, बढ़े चलो
- सोहन लाल द्विवेदी (Sohan Lal Dwivedi)
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
'So Na Saka'
- Ramanath Awasti
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
बढ़े चलो
-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं