Aag Jalthi Rahe

आग जलती रहे
- दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar)

एक तीखी आँच ने
इस जन्म का हर पल छुआ,
आता हुआ दिन छुआ
हाथों से गुजरता कल छुआ
हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा,
फूल-पत्ती, फल छुआ
जो मुझे छुने चली
हर उस हवा का आँचल छुआ

... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछुता
आग के संपर्क से
दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में
मैं उबलता रहा पानी-सा
परे हर तर्क से
एक चौथाई उमर
यों खौलते बीती बिना अवकाश
सुख कहाँ
यों भाप बन-बन कर चुका,
रीता, भटकता
छानता आकाश
आह! कैसा कठिन
... कैसा पोच मेरा भाग!
आग चारों और मेरे
आग केवल भाग!

सुख नहीं यों खौलने में सुख नहीं कोई,
पर अभी जागी नहीं वह चेतना सोई,
वह, समय की प्रतीक्षा में है, जगेगी आप
ज्यों कि लहराती हुई ढकने उठाती भाप!

अभी तो यह आग जलती रहे, जलती रहे
जिंदगी यों ही कड़ाहों में उबलती रहे ।

Category: hindi-poems

Comments

  • Anonymous
    10 Aug 13
    Please correct the spelling of the poem title in English - it's "jalti" and not "jalthi"
  • Dr Deepshikha
    14 May 13
    please check the spellings of "yun" in hindi...and also " chhune" in the line chhune chali...really appreciate your efforts in putting up this blog...keep up the good work...
  • edgedgf
    14 Feb 13
    Hello! abdcbag interesting abdcbag site!
  • Anonymous
    31 Jul 12
    mind blowing dusyantji
  • Anonymous
    16 Jul 11
    this is too big.....kept writing........ridiculous
  • Anonymous
    27 Jun 10
    I hate this site it does'nt have poem on Farmers.
  • Anonymous
    13 Apr 11
    oh cm on
    but it has many other poems
  • sikandar kumar
    26 May 11
    i liked this poem because it is written in simple style and it touches the heart directly.
    jjkk
  • Anonymous
    25 Apr 10
    Great Mind blowing!!!!!!!!!!!!