Mukti ki Aakansha
मुक्ति की आकांक्षा
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)
चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं हवा में उन्हें
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
Comments
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27 Jun 13my name is also akansha
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22 Dec 12Yahi hai aazadi ki tamanna.
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27 Oct 12good
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26 Oct 12Very Nice :)
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20 Jan 13wah kya bat hai . is kavita jash bhar diya